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एक गांव में गोपाल नाम का किसान रहता था। परिवार में उसकी पत्नी और 2 बच्चे यही उसका संसार था। गुजारा करने के लिए वह अपने छोटे से खेत में फसलें उगाता था
और उन्हें बेच कर अपना और अपने परिवार के लिए दो वक्त का खाना जुटा पाता था। कहने को उसके पास इतना धन नहीं था लेकिन फिर भी वह काफी खुश था।
एक दिन दोपहर को वह अपनी पत्नी के साथ खेत पर खड़े होकर कह रहा था," हे भगवान ! अगर बारिश हो जाए तो इस बार सभी किसानों की फसलें अच्छी हो जाए। "
उसकी पत्नी भी कहती है," हां ! सही कहा आपने। अगर बारिश हो जाती है तो इस बार काफी अनाज हम किसानों के पास आ जाएगा। "
बारिश की आस में किसानों की उम्मीदें टूटने लगती हैं लेकिन बारिश की एक भी बूंद जमीन पर नहीं गिरती। परिणाम यह होता है कि सभी किसानों की फसलें बर्बाद हो जाती हैं और सूखने लगती हैं। गोपाल की फसल भी पूरी तरह बेकार हो जाती है।
ये देखकर गोपाल कहता है," हे भगवान ! इस बार किसानों का बहुत नुकसान हुआ है। फसलें पूरी तरह नष्ट हो चुकी हैं। मैंने तो इस फसल और बच्चों की पढ़ाई के लिए कर्जा भी ले रखा था। अब मैं इस कर्जे को कैसे चुकाऊंगा ? "
यह सुनकर गोपाल की पत्नी गोपाल को सहारा देते हुए कहती है," कोई बात नहीं... अब जो होना था वह तो हो गया। हमारी पड़ोस वाली दीदी कह रही थी कि संतोष भैया शहर गए हैं। हो सके तो आप भी शहर चले जाइए। शहर जाकर थोड़ा पैसे कमा पाएंगे तो कर्जा भी चुका देंगे।
यह सुनकर गोपाल कहता है," हां ! अब मेरे पास केवल दो ही रास्ते हैं। या तो मैं शहर जाकर थोड़े बहुत पैसे कमा लूं या फिर खेत बेच दूं।
लेकिन मैं खेत बेचना नहीं चाहता क्योंकि हमारे पालन पोषण का यही एकमात्र सहारा है। बाद में गोपाल और उसकी पत्नी दोनों मिलकर गोपाल के शहर जाने को ही उचित समझते हैं।
अगली सुबह गोपाल शहर जाने की तैयारी करता है। वह अपनी पत्नी से कहता है," सुनो... मैं खाली हाथ शहर जा रहा हूं, कोशिश पूरी करूंगा कि कहीं अच्छा सा काम ढूंढ लूं और थोड़ा बहुत पैसा कमा लूं। जैसे ही कुछ पैसे हो जाएंगे मैं तुम्हें खर्चे के लिए भिजवा दूंगा। "
आप मेरी और बच्चों की चिंता मत कीजिए हमारा खर्चा ही कितना है ? और फिर बाद में कुछ दिनों के लिए मैं मायके भी रह आऊंगी। आप अपना ध्यान रखिए और शहर जाकर पैसे कमाइए।
गोपाल के जाते वक्त गोपाल की पत्नी उसे कुछ पैसे देती है। यह देखकर गोपाल कहता है," यह पैसे कहां से आए ? "
गोपाल की पत्नी कहती है," मैंने थोड़ा - थोड़ा करके यह पैसे जमा किये थे, अपने बुरे वक्त के लिए। अब शायद इनका सही वक्त आ चुका है। यह लीजिए... रखिए। "
गोपाल थैला उठाता है, इसी में उन पैसों को रख लेता है और शहर के लिए रवाना हो जाता है। शहर पहुंचकर वह काम ढूंढना शुरू करता है
लेकिन पूरा दोपहर काम की तलाश करते करते वह थक जाता है लेकिन काम नहीं मिलता है। उसके बाद वह एक बगीचे में जाकर पेड़ की छांव में बैठ जाता है।
वहीं पास में दो जेब कतरे आपस में बात कर रहे होते हैं," सुन बे चंगुल 3 दिनों से कोई भी मुर्गा हाथ नहीं लगा है, लगता है इसके पास काफी माल है। इस बार खाली हाथ लौट कर नहीं आना है। "
" सही कहा मालिक... आपकी निगाहें तो बहुत तेज है। "
" चल अब तारीफ करना बंद कर और काम पर लगजा। मैं इसे बातों में उलझा लूंगा और तू इसका थैला लेकर एक नौ ग्यारह हो जाना। "
" मालिक वह सब तो ठीक है लेकिन एक नौ ग्यारह नहीं नौ दो ग्यारह होना है। " 😂🤣
" बकवास बंद कर और काम पर लग जा। "
उनमें से एक जेब कतरा गोपाल के पास जाकर उससे बात करने लगता है," अरे श्याम बाबू...कैसे हो ? बड़े दिनों बाद दिखाई दिए हो। "
" अरे भाई ! आप कौन ? मैं तो आपको जानता भी नहीं हूं और मेरा नाम श्याम बाबू नहीं, मेरा नाम तो गोपाल है। "
" अरे हां ! तभी मैं कहूं कि मैं तुम्हारा नाम भूल रहा हूं। अच्छा और बताओ क्या हाल हैं ? "
" अरे क्या बताऊं भैया ? गांव से शहर आया हूं काम की तलाश में लेकिन काम मिल नहीं रहा। अगर आप मुझे जानते हो तो मेरे लिए कोई काम ही बता दो। "
इन दोनों की बातचीत हो ही रही थी तभी चंगुल गोपाल का थैला लेकर नौ दो ग्यारह हो जाता है।
पहला जेबकतरा कहता है," अरे भाई लगता है पहचानने में गलती हो गई, चलो मैं चलता हूं। "
" अजीब लोग हैं शहर के... पहले खुद ही जान पहचान का दिखावा करते हैं और बाद में खुद ही अनदेखा करने लगते हैं। "
इतने में गोपाल की नजर अपने थैले की ओर पड़ती है लेकिन वहां पर थैला न देखकर वह काफी निराश हो जाता है। और कहने लगता है," शहर के लोग तो बड़ा ही निर्दय है, गरीब के थैले को भी नहीं छोड़ते। "
वह भगवान से प्रार्थना करता है कि वही उसकी मदद करें। इतने में गोपाल के पीछे से एक दर्द भरी आवाज आती है," बचाओ ! बचाओ ! "
गोपाल उस आवाज को सुनते हुए पीछे मुड़ता है और देखता है कि वहां एक घायल व्यक्ति जमीन पर नीचे पड़ा हुआ है। उसके आसपास से लोग गुजर रहे हैं लेकिन कोई भी उसे सहारा नहीं दे रहा है।
गोपाल तुरंत जाकर उस व्यक्ति को बैठाता है और उसकी घायल स्थिति को देखकर तुरंत हॉस्पिटल ले जाने का इंतजाम करता है। हॉस्पिटल ले जाकर वह डॉक्टर से बात करता है।
" डॉक्टर साहब... इन्हें देख लीजिए, यह बहुत घायल है और दर्द के मारे कराह रहे हैं। "
डॉक्टर उस व्यक्ति की हालत देखता है और कहता है," तुरंत इलाज शुरू करना होगा। इसके लिए तुम्हें कुछ पैसे काउंटर पर जमा करने होंगे। "
यह सुनकर गोपाल आश्चर्य में पड़ जाता है और डॉक्टर से कहता है," डॉक्टर साहब ! आज सुबह ही में शहर आया हूं काम की तलाश में लेकिन काम तो मिला नहीं ऊपर से मेरा थैला भी किसी ने चुरा लिय।
मेरे पास अब कोई पैसा नहीं है। मैं खुद भूखा - भूखा काम की तलाश में इधर-उधर घूम रहा था। लेकिन तभी मुझे ये जमीन पर घायल पड़े दिखाई दिए और मैं इन्हें हॉस्पिटल लेकर आ गया। "
डॉक्टर उस व्यक्ति का तुरंत इलाज शुरू कर देते हैं और कुछ समय बाद बाहर निकलते हैं। तभी गोपाल अपनी जेब से एक पर्स निकालता है जो उसे घायल व्यक्ति को हॉस्पिटल लाते हुए उसकी जेब से गिरते हुए मिल गया था।
वह उसे डॉक्टर को दिखाते हुए कहता है," यह लीजिए डॉक्टर साहब... यह इन्हीं का पर्स है। मैंने तो इसे खोला भी नहीं है। देख लीजिए शायद इसमें पैसे हो। "
डॉक्टर उस पर्स को चेक करता है तो उसमें बहुत सारे, आईडी कार्ड और क्रेडिट कार्ड होते हैं। जब डॉक्टर उनकी आईडी कार्ड को चेक करता है तो उसे पता चलता है कि यह तो शहर के सबसे अमीर आदमी है।
वो तुंरत गोपाल से कहता है," अच्छा हुआ जो तुम इन्हें हॉस्पिटल लेकर आ गए। तुम जानते हो यह शहर के सबसे बड़े आदमी हैं ? "
" मुझे नहीं पता... मैंने तो अपना फर्ज निभाया है। "
डॉक्टर गोपाल को शाबाशी देता है और कहता है," कल सुबह इन्हें होश आ जाएगा। तुम कल सुबह आकर इनसे मिल सकते हो " और वापस इलाज वाले कमरे में चला जाता है।
गोपाल रात भर उस गार्डन में ही सोता है और सुबह होते ही वह हॉस्पिटल वापस आ जाता है। गोपाल डॉक्टर से पूछता है," डॉक्टर साहब ! अब इनकी तबीयत कैसी है ? "
डॉक्टर कहता है," अब बिल्कुल ठीक है। तुम इन से मिल सकते हो। "
डॉक्टर उस व्यक्ति से गोपाल का परिचय कराते हुए कहता है," यह गोपाल जी हैं, इन्होंने ही आपकी जान बचाई है। घायल स्थिति में यही आपको हॉस्पिटल लेकर आए थे। "
यह सुनकर गिरधर जी (घायल व्यक्ति) कहते हैं," धन्यवाद ! मेरी जान बचाने के लिए। तुम हो कौन और क्या करते हो ? "
तभी गोपाल कहता है," मैं गांव से शहर आया हूं... एक अच्छे से काम की तलाश में लेकिन अभी तक मुझे कोई भी काम नहीं मिला है। मेरे ऊपर कर्जा है। मैं उस कर्ज से मुक्त होने के लिए शहर पैसे कमाने के लिए आया हूं। "
गिरधर जी यह सोच कर हैरान हो जाते हैं कि यह व्यक्ति इतनी परेशानी में होते हुए भी मुझे हॉस्पिटल लेकर आया।
वह कहते हैं," मुझे यह जानकर बहुत अच्छा लगा कि इस समय में भी तुम जैसा अच्छा और ईमानदार इंसान है। एक काम करना कल मेरी छुट्टी है तो तुम कल सुबह ठीक इसी समय आना। मेरे पास तुम्हारे लिए काफी अच्छा काम है। "
गोपाल शुक्रियादा करते हुए वहां से चला जाता है और अगले दिन ठीक उसी समय हॉस्पिटल पहुंचता है। हॉस्पिटल से वे दोनों गिरधर जी के घर के लिए रवाना हो जाते हैं।
घर में प्रवेश करते वक्त गोपाल उनके एक बड़े से महल और बड़ी-बड़ी गाड़ियां देखकर हैरान रह जाता है और सोचता है कि यह व्यक्ति कितने अमीर होंगे ?
गोपाल अंदर जाकर सोफे पर बैठ जाता है। तभी गिरधर जी नौकर से उसके लिए पानी और खाने के लिए कुछ लाने को कहते हैं। गिरधर जी कहते हैं," गोपाल... तब तक तुम कुछ खा पी लो, तब तक मैं 15 मिनट में आता हूं। "
गोपाल खा पीकर थोड़ा आराम करता है तभी गिरधर जी आते हैं और कहते हैं," गोपाल... शहर के बाहर मेरी एक बड़ी फैक्ट्री है जिसमें खेती से जुड़े उत्पाद बनाए जाते हैं।
खाने पीने का कोई झंझट नहीं है। वहां पर तुम्हें खाने पीने को सब मिलेगा, रहने को घर मिलेगा। अगर तुम सहमत हो तो तुम इस काम को कर सकते हो। "
गोपाल कहता है," यह तो मेरे लिए बहुत ही अच्छी बात है। वैसे भी मैं एक किसान हूं, खेती-बाड़ी के बारे में मुझे बहुत अच्छे से पता है। मैं इस काम को अच्छे से कर पाऊंगा। "
गिरधर जी कहते हैं," तुम चाहो तो अपने परिवार को भी यहां लाकर रह सकते हो। " गिरधर जी गोपाल को कुछ पैसे देते हैं जिससे वह अपने कर्ज को चुका पाए।
फिर गोपाल गांव जाता है और अपनी कर्जे को पूरी तरह चुका देता है। और अपने परिवार के साथ शहर वापस लौट आता है।
गिरधर जी गोपाल के दोनों बच्चों की पढ़ाई का खर्चा भी खुद ही उठाते हैं और उनके खाने-पीने का और रहने का खयाल भी रखते हैं।
गोपाल खूब मन लगाकर फैक्ट्री में काम करता है और खुशी-खुशी अपने परिवार के साथ रहता है। अब गोपाल पूरी तरह आजादी महसूस करता है और अपने मालिक का शुक्रियादा करता है।
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